Gunjan Kamal

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प्यार जो मिला भी और नहीं भी भाग :- १४

                                                    भाग :- १४


चौदहवां अध्याय शुरू 👇


मधु की तबीयत दो-तीन दिन से खराब चल रही है इस कारण वह  कॉलेज भी नहीं जा पा रही है हालांकि कॉलेज में हो रही पढ़ाई उसकी छूट न जाए इसके लिए वह अपने  साथ  रह रहे मामा के लड़के को अपनी सहेली रीता के पास भेजती रहती है और उससे मंगवाकर अपने नोट्स तैयार भी वह कर रही है। अपनी बेटी मधु  को बीमार होने के बाद भी पढ़ाई का तनाव लेकर नोट्स बनाते हुए देखकर मधु की माॅं से रहा नही जाता और वह मधु के पास आती है और उसके सामने से किताब और कॉपी हटाकर पास ही रखे टेबल पर वह रख रही है। अपनी माॅं को ऐसा करते देख मधु  आश्चर्य में पड़ जाती है और उनसे पूछ रही  है 👇


मधु :- आपने मेरी किताब और कॉपी क्यों टेबल पर रख दी? मैंने आज पढ़ाएं  गए चैप्टर का नोट्स अभी तक तैयार नहीं किया है। अभी वह अधूरा है और आप जानती है ना कि अधूरी चीजे आपकी बेटी को पसंद नही। जब तक मैं  इसे पूरा नही कर लेती मैं चैन से नही रह पाऊंगी इसलिए आप मुझे वें काॅपी - किताब और कलम दें दें जो आपने अभी टेबल पर रखे है।


मधु की माॅं  पहले तो गुस्से से मधु को घूरती है  फिर कुछ देर बाद सामान्य होते हुए उसके पास जाकर बैठ गई है और अब अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कह रही है  👇


मधु की माॅं :- मेरी लाडो! मैं जानती हूॅं कि तुम्हारे लिए पढ़ाई सब कामों से अधिक जरूरी काम है लेकिन अपनी सेहत का भी तो ध्यान तुम्हें ही रखना होगा। मैं तुम्हारा ध्यान चाहकर भी उतना नही रख  पाऊंगी जितना मुझे रखना चाहिए क्योंकि मेरी  और भी जिम्मेदारियां हैं जो मुझे पूरी करनी होती है। मैं १०:०० बजे से ४:००  बजे तक तो स्कूल में ही रहती हूॅं सिर्फ रविवार का दिन ही मिलता है जो मैं पूरे समय अपने परिवार के साथ बिता सकती हूॅं  लेकिन  उसमें भी रविवार के दिन इतने सारे काम आ जाते हैं कि मैं उन कामों को निपटाऊं या कुछ और करूं समझ ही नही पाती। ऐसे में तुम्हारे और तुम्हारे बड़े भाई की जिम्मेदारी मैं ही तो निभाती आई हूॅं तुम्हारे पापा को तो अपने देशसेवा से फुर्सत ही कहां थी और अभी भी है कि तुम दोनों की किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी उठाएं।


अपनी माॅं की बातें सुनकर मधु ने पहले तो मुस्कुरा कर उन्हें देखा उसके बाद उनके गले में अपनी दोनों बांहों को डालकर  कहा 👇


मधु :- मुझे आपसे ना तो किसी भी प्रकार की शिकायत पहले ही थी और ना अब ही है। वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि आप तो मेरी आइडियल कल भी थी, आज भी है और आने वाले हर पल में रहेंगी। मेरी माॅं दुनिया की सबसे अच्छी माॅं है, समझी आप ?


बेटी की बातो ने  मधु की माॅं की ऑंखो में ऑंसू ला दिए और भावविभोर होकर उन्होंने कहा 👇


मधु की माॅं :- समझ गई बिल्कुल सही गई लेकिन मेरी कही बातें भी तुम अगर समझ जाती तो मेरे साथ - साथ तुम्हारे लिए भी बहुत अच्छा होता।


"कौन सी बात माॅं?"  मधु ने अनजान बनते हुए अपनी माॅं से पूछा।

"कान  खींचूं तुम्हारे.... मुझसे मस्करी करे  जा रही हो, सब कुछ मालूम है फिर भी।" मधु की माॅं  ने अपने बाएं हाथ को मधु के  दाएं कान  के पास लाते हुए कहा।


"नहीं....नहीं... माॅं। कान मत खींचना,आप  जानती हो ना  कान खींचने पर मुझे बहुत दर्द होता है।"  कहते हुए मधु कमरे से बाहर भागने लगती है और  उसकी माॅं भी उसे पुकारते हुए तेज कदमों से उसके पीछे जाती है।


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"पापा आप ने मुझे बुलाया था?"  ऋषभ पहले तो अपने पिता के पास जाकर खड़ा होता है और उनसे कहता है।

"बुलाया था का क्या मतलब है? अभी भी बुला ही  रहा हूॅं उस  समय से लेकिन तुमने तो कान में तेल  डाली हुई है एक बार में तो सुनते ही नहीं हो।  बड़ा भाई ही जब बड़ों की बातों की अनदेखी करेगा तो छोटा भाई अपने बड़े भाई से  यही तो  सीखेगा। यदि कुछ अच्छा नहीं सिखा सकते हो उसे तो ऐसी हरकतें करना बंद कर दो जिससे कि तुम्हारी छोटे भाई पर तुम्हारा असर पड़े।"  गुस्से में आग उगलती नजरों से  ऋषभ के पिता ने  उसको देखा और उसे सबके सामने ही सुना दिया।


ऋषभ चुपचाप नजरें झुकाए अपने दोनों हाथों को एक दूसरे से बांध उसे आगे कर खड़ा है। बचपन से ही वह अपने पिता से बहुत डरता है। पिछले साल भी जब पहली बार दसवीं बोर्ड की परीक्षा में वह  पास नहीं हो पाया था तो उसके पिता ने उसे सबके सामने सुनाया तो था ही उस पर थप्पड़ भी उठा दिया था। उसकी माॅं दरवाजे की ओट में खडी़ सब कुछ देख रही थी लेकिन उसकी इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह जाकर अपने पीटते हुए बेटे को बचा सके। बच्चे को चोट लगे तो माॅं को पीड़ा होती ही है ये जानते और  देखते हुए भी ऋषभ के पिता नारायण ठाकुर उसके सामने ही अपने बेटे पर  लगातार थप्पड़ों की बरसात किए ही जा रहे थे और वहां पर उन्हें रोकने वाला भी कोई नहीं था। ऋषभ की दादी की भी उम्र ऐसी नहीं थी कि वह ऑंगन से दौड़कर बाहर दरवाजे तक जल्द से जल्द  पहुॅंच सके।


चुपचाप खड़ा  ऋषभ दसवीं के रिजल्ट के दिन को ही याद कर रहा था और उस मार को भी महसूस कर रहा था जो उस दिन उसको पड़ी थी इसीलिए वह चुपचाप नजरें झुकाए वहां पर खड़ा अपने पिता के बोलने के बाद थककर रूकने  का इंतजार कर रहा था तभी उसने देखा कि  उसके पिता के कदम उसकी तरफ ही बढ़ रहे है। डर के मारे उसका दिल कह रहा है कि वह पीछे मुड़कर वहां से भाग जाए, नही तो उसकी देर से सुनने की गलती पर उसके पिता उसे मारने लगेंगे लेकिन दिमाग ने  उसे यह दस्तक दी कि यदि वह ऐसा करेगा तो हो सकता है उसके पिता का गुस्सा और भी बढ़ जाए और उसे और भी मार खानी पड़े। दिल और दिमाग की जद्दोजहद में आखिरकार उस वक्त दिमाग जीता जिसकी वजह से ऋषभ अपने पूर्व  स्थान पर ही खड़ा रहा।


"जाओ जाकर पुरवाई गाछी ( आम का बगीचा ) में देखो की वहां पर काम करने वाले आए है या नहीं? यदि वें  आ गए होंगे तो वहीं पर जाकर बैठना और देखते रहना के सही ढंग से वें सब काम कर रहे हैं या नहीं? आम की क्यारी को और अधिक मजबूत बनाने  के साथ-साथ आम के पेड़ पर दवा का छिड़काव भी उन्हीं को  करना है। सारी व्यवस्था देखना  तुम्हारे बस का तो है नहीं इसीलिए मैं पूरी तरह निश्चिंत होकर तुम पर ये काम छोड़ नहीं सकता, मुझे तो आना ही होगा।  मैं दो  घंटे में आता हूॅं तब तक तुम वहां पर जाकर जितना मैंने कहा है उतना काम संभाल लेना।"  ऋषभ के पिता ने उसके एकदम करीब आकर उससे कहा।


ऋषभ ने तुरंत ही दरवाजे के पास ही एक कोने में पड़ी हुई अपनी साइकिल का ताला खोला  और उस पर बैठकर पूरवाई गाछी की तरफ जाने वाले रास्ते की ओर मुड़ने ही वाला था कि तभी उसे अपनी माॅं की आवाज पीछे से आती सुनाई पड़ी।


जाते हुए ऋषभ को उसकी माॅं ने पीछे से क्यों टोक दिया? उसके बाद इस बात पर उसके पिता की क्या प्रतिक्रिया रही?  इन सभी तमाम बातों को जाने के लिए जुड़े रहे इसके अगले अध्याय से।


क्रमशः



गुॅंजन कमल 💓💞💗


# उपन्यास लेखन प्रतियोगिता 


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13 Comments

दशला माथुर

20-Sep-2022 02:34 PM

Nice post

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Mithi . S

18-Sep-2022 04:35 PM

Shandar rachana

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Chetna swrnkar

18-Sep-2022 12:00 PM

बहुत खूब 👌

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